‘अतरंगी रे’ के बारे में एक बात पूरी तरह से साफ है कि इसके निर्माता इसे सिनेमाघरों में रिलीज करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और यह फिल्म ओटीटी को बेच दी गई जब देश भर के सिनेमाघर फिर से खुल गए और दर्शक भी सिनेमाघरों आ रहे हैं।
फिल्म ‘अतरंगी रे’ देखते समय सबसे पहला सवाल जो दिमाग में रहता है वह यह है कि पूरी फिल्म की कमजोर कड़ी क्या है, जिसके कारण इसके निर्माता फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
इसका असली जवाब तो आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन यहां इतना ही बता देना काफी है कि निर्देशक आनंद एल राय के लिए यह एक बाल बाल बचना जिसे कह सकते है वैसी हालत इस फिल्म में है।
फिल्म को देखकर ऐसा लगता है कि शाहरुख खान से टूटकर वह सीधे अक्षय कुमार कि झोळी में गिर पड़े हैं और उनके आभामंडल से उतने ही चकाचौंध हैं, जितने ‘जीरो’ बनाते वक्त ‘खान साहब’ के तेज से थे।
निर्देशक के तौर पर आनंद एल राय के लिए ‘जीरो’ अगर नींद में जगाने वाली फिल्म थी, तो ‘अतरंगी रे’ भी उनके लिए खुद को ज्यादा सतर्क रखने की सीख है। उनकी अपनी प्रोडक्शन कंपनी है और उनका अपना ब्रांड भी है।
फिल्म ‘अतरंगी रे’ की कहानी ट्रेलर रिलीज के समय से ही साफ हो गई है। बिहार की एक लड़की है, और वह विवाह के लिए उनका स्वयंवर करने की इच्छा है।
लेकिन परिवार के सदस्यों ने उसके पैर डगमगाने से पहले ही उसके हाथ पीले करने का फैसला कर लिया है। इस लिये एक लड़के को पकड़कर लाया जाता है।
यह मेडिकल की पढ़ाई करने वाली तमिलनाडु की अन्ना निकलला है। इससे पहले कि दोनों हम तुम चोरी से, बंधे एक डोरी से जैसे कोई गीत गा सकें, इस तार की गांठ एक जादूगर के रूप में सामने आती है।
मनमोहिनी उसके द्वारा फिदा है और वह है फिदा-ए-इश्क कहानी में कई ट्विस्ट हैं। उन्हें धीरे-धीरे खोलने की खुशी ‘रांझणा’ की तरह भी आ सकती थी।
लेकिन इस बार हिमांशु शायद चॉकलेट के रैपर को उतारने में काफी समय लेता है लेकिन फिर दर्शक को चॉकलेट खाने का आनंद नहीं लेने देता। यहां कहानी पानी की तरह हो जाती है, इसे मुंह में रखकर तुरंत निगल लें।
फिल्म ‘अतरंगी रे’ में हिमांशु शर्मा की गलती ज्यादा नहीं है। वह लेखक से निर्माता भी बन गए हैं। उन्होंने भी “प्रोजेक्ट” को समझना शुरू कर दिया है। यहां सिनेमा लडखडाने लगती है।
आनंद एल राय ने ‘रांझणा’ में जो कुछ भी कमाया, उसने इस फिल्म में फ्लॉप फिल्म निर्देशक का लेबल अपने ऊपर से हटाने के लिए वह सब दांव पर लगा दिया है।
यहाँ पैमाना यह है कि सारा अली खान और सोनम कपूर एक जैसी अभिनेत्रियाँ हैं। अक्षय कुमार अपने स्टारडम के शिखर पर हैं और धनुष अपने निर्देशक पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं।
लड़का अगर तमिलनाडु का है तो उसके तमिल भाषी को हिंदी सिनेमा में जोक बनाने की तरकीब पुरानी हो गई है. निर्देशन के मामले में आनंद एल राय ने जाहिर तौर पर फिल्म को एक ऐसी फिल्म बनाने पर पूरा जोर दिया है जो किसी भी तरह से फ्लॉप न हो।
तो यहां एक्शन, इमोशन, ड्रामा सब कुछ है। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा एक पहलू भी है जिस पर अलग से चर्चा करने की जरूरत है।
और, सारा अली खान इस पूरे एक्शन, इमोशन और ड्रामा का केंद्रबिंदु हैं। यह फिल्म असल में सारा अली खान की है। धनुष और अक्षय कुमार का उनके साथ पैकेज डील है।
सारा की पिछली फिल्म ‘लव आज कल’ भी सुपर फ्लॉप रही थी। दो सफल फिल्में देने के बाद स्कोर कार्ड उनकी दो फ्लॉप फिल्मों पर टिका है और ‘अतरंगी रे’ ने सही समय पर आकर उनके करियर को बचा लिया है।
यह फिल्म उनके लिए भी एक बड़ी सीख है। एक्टिंग ऐसी होनी चाहिए कि वह पर्दे पर एक्टिंग न लगती हो। सारा ने अपने करियर की पांचवीं फिल्म में आकर यह सीखा है।
उसके पास अभी कुछ पॉलिश नहीं है और सैफ अली खान और अमृता सिंह की बेटी होने के नाते, उसके पास भी मौके हैं। धनुष फिल्म की जान हैं, धनुष के लालच में लोगों ने फिल्म भी देखी।
धनुष अकेले पूरी कहानी के सबसे अद्भुत कलाकार हैं। उन्होंने एक आम इंसान की कहानी को पर्दे पर देखने के लिए करोड़ों लोगों को हिम्मत दी है।
अक्षय कुमार कि फिल्म में हर जगह और हर फ्रेम में होने की कोशिश करना और कभी-कभी ओवरएक्टिंग भी करना। लेकिन, अब सब कुछ ठीक चल रहा है। इसलिए मामला सुलझ गया है।
फिल्म ‘अतरंगी रे’ चाहे जिस भी चीज से बनी हो, वह ज्यादा खराब नहीं है। लेकिन इसकी आत्मा इसका संगीत है। इरशाद कामिल और ए आर रहमान ने एक बार फिर साथ में कमाल कर दिया है।
फिल्म के संगीत रिलीज कार्यक्रम में रहमान ने कहा था कि जब फिल्म की कहानी पूरे देश में घूम रही हो तो उसका संगीतमय सफर भी साथ होना चाहिए। रहमान और कामिल की काबिल जोड़ी ने बस यही किया है।
दलेर मेहंदी को ‘गर्दा’ में लंबे समय बाद सुनना पसंद है; तो श्रेया घोषाल ने भी ‘चाका चक’ में लंबे समय बाद हैरान कर दिया है।
राशिद अली की आवाज जहां ‘तूफान की सर्दी’ को एक अलग एहसास देती है, वहीं ‘रीत जरा सी’ में अरिजीत और साशा ने गाने के शब्दों में जान डाल दी है, कहानी के दुपट्टे में ‘तेरा रंग’ और ‘लिटिल लिटिल’ भी फिट हुए हैं।
फिल्म में संगीत के अलावा दो बातें ध्यान देने योग्य हैं। एक है इसका प्रोडक्शन डिजाइन और दूसरा है इसका कॉस्ट्यूम। इन दोनों विभागों ने फिल्म ‘अतरंगी रे’ को पर्दे पर उतारने में काफी मदद की है।
पंकज कुमार की छायांकन फिल्म की आत्मा को सम्मान देती है। हेमल कोठारी ने फिल्म की अवधि दो घंटे 18 मिनट रखते हुए फिल्म को डिजिटल पर रिलीज करने के फैसले को सही ठहराया है।
घर बैठे आपको पहले फिल्म ‘अतरंगी रे’ देखनी है या सिनेमा हॉल में 83′ देखणे के लिये जाना है, यह आपको खुद तय करना होगा।
क्योंकि ‘अतरंगी रे’ के लिए एक छोटा सा परदा भी चलेगा, लेकिन ’83’ 100% बड़े पर्दे की है क्योकी यह बिग सिनेमा है।