Business Idea : अब खेती अब 2 जून की रोटी की खेती नहीं रह गई है, बल्कि आज की खेती एक उद्योग बन रही है।
लोग कम जमीन से भी अच्छी कमाई कर रहे हैं। जैविक खेती कर एक-दो नहीं बल्कि हजारों युवा सफलता की नई-नई सीढ़ियां चढ़ रहे हैं।
हम यहां जैविक कपास की खेती (Cotton Seed Oil)) के बारे में बात कर रहे हैं। गौतमबुद्धनगर के कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं प्रभारी डॉ. मयंक राय बताते हैं कि भारत में रेशे वाली फसलों में कपास का प्रमुख स्थान है और यह नकदी फसल है।
सूती रेशे से कपड़ा बनाया जाता है और इसके रेशे को निकालने के बाद इसके कपास के बीज का उपयोग पशुओं को खिलाने के लिए किया जाता है। कपास के बीज का तेल भी बिनौला से निकाला जाता है।
डॉ. राय के अनुसार अब लोग रासायनिक खेती के दुष्परिणामों को जान चुके हैं और जैविक उत्पादों को अपना रहे हैं।
भारत में देसी, मुलायम और बीटी कपास की जैविक खेती का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। कपास की जैविक खेती से उन उत्पादों का महत्व स्वतः ही बढ़ जाता है जिनमें इसके रेशे, बिनोल और तेल होते हैं।
लंबे रेशा वाले कपास को सबसे अच्छा माना जाता है जिसकी लम्बाई 5 सेंटीमीटर, मध्य रेशा वाली कपास जिसकी लम्बाई 3.5 से 5 सेंटीमीटर होती है और छोटे रेशे वाली जिसकी लम्बाई 3.5 सेंटीमीटर होती है.
कपास की खेती के लिए मौसम और मिट्टी (Organic Farming)
डॉ. मयंक राय बताते हैं कि कपास के पौधे के लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेट से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तक के तापमान की जरूरत होती है. टिंडे खिलने के समय साफ मौसम, तेज और चमकदार धूप होनी चाहिए।
इससे रेशे में चमक आ जाती है और टिंडे पूरी तरह खिल जाते हैं. कपास की जैविक खेती (Kapas Ki Kheti) के लिए कम से कम 60 सेंटीमीटर वर्षा की जरूरत होती है।
कपास की जैविक खेती के लिए मिट्टी में जलधारण और जल निकास क्षमता होनी चाहिए. जिन इलाकों में वर्षा कम होती है, वहां मटियार जमीन में कपास की खेती की जाती है।
मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.0 होना चाहिए. हालांकि 8.5 पीएच मान तक वाली भूमि में भी कपास की खेती की जा सकती है।
बुआई समय और तरीका
कपास की बुआई दो समय पर की जाती है. एक बार वर्षा से पहले सूखे खेत में बोना दूसरा एक बारिश के बाद बुआई करना। वर्षा से पूर्व बुआई को अगेती बुआई कहते हैं. इसमें मॉनसून के 7-8 दिन पहले सूखे खेत में बुआई कर देते हैं।
वर्षा के बाद जमाव को देख कर खाली जगह पर फिर से बीज वो देते हैं. इस विधि में उत्पादन अधिक मिलता है. सामान्तया यह बुआई 10-20 जून के मध्य होती है दूसरा समय बारिश के बाद बुआई का होता है।
कपास की बुआई लाइन में की जाती है. देसी कपास की बुआई 30X15 सेंटीमीटर पर करते हैं. हाइब्रिड एवं अमरीकन कपास की बुआई 45X90 सेंटीमीटर पर करते हैं।
बीज की मात्रा बोई जाने वाली वैरायटी पर निर्भर करती है. हाइब्रिड कपास 450-500 ग्राम बीज एक एकड़ खेत के लिए पर्याप्त है. देसी कपास की बुआई के लिये 5-6 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है।
जैविक खाद और जैव-उर्वरक
कपास की जैविक खेती के लिए बुआई से 15 दिन पहले खेत में 30 से 40 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल करें।
साथ में 500 किलोग्राम घनजीवामृत बिखेरने के बाद खेत की अच्छी जुताई करें और पाटा चलाकर खेत समतल कर लें।
खाद डालने के बाद खेत को खुला नहीं छोड़ें. जैव उर्वरक राइजोबियम, पीएसबी, पोटाश और जिंक घोलक जीवाणु कल्चर का इस्तेमाल बुवाई से पहले बीज उपचार करते समय करें।
मिट्टी का उपचार
कपास की जैविक खेती के लिए मिट्टी का उपचार जरूरी है. मिट्टी के उपचार के लिए 2.5 से 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राइकोडर्मा विरिडी को 150 से 200 किलोग्राम वर्मीकम्पोस्ट या गोबर खाद मिलाकर मोटी पॉलीथिन सीट से ढककर 10-12 दिन तक छाया में रखते हैं।
3-4 दिन के अंतर पर इसे फिर आपस में मिला कर ढक दें. इसके बाद बुआई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में समान रूप बिखेर कर मिला दें.
बीज उपचार (Cotton Seed)
बीज से होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए 5-10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी से बीज को उपचारित करें।
इससे जड़ सड़न, तना सड़न, डैम्पिंग ऑफ, उकठा, झुलसा आदि फफूंद से होने वाली बीमारियों से छुटकारा मिलेगा।
इसके बाद बीज को एजोटोबैक्टर, पी. एस. बी. और पोटाश जैव-उर्वरक (एनपीके जैव-उर्वरक) से उपचारित कर छाया में सुखाकर बोना चाहिए।
डॉक्टर मंयक राय बताते हैं कि कपास की जैविक की फसल में सल्फर बहुत जरूरी है. इसके लिए फूल निकलने से पहले जैविक प्रमणित घुलनशील सल्फर 2 प्रतिशत का घोल फसल पर स्प्रे करते हैं।
7 दिन के अंतर पर दो बार स्प्रे करें. इस तरह तरल जैविक खाद का इस्तेमाल करके आप कपास की जैविक खेती कर सकते हैं।
जैविक कपास का उत्पादन (Organic Cotton Production)
वर्ष 2020-21 में 8,10,934 मीट्रिक टन जैविक कपास का उत्पादन हुआ है. जबकि इसकी तुलना में 2019-20 के दौरान 3,35,712 मीट्रिक टन और 2018-19 में 3,12,876 मीट्रिक टन जैविक कपास की पैदावार हुई थी। इससे पता चलता है कि जैविक कपास की उपज लगातार बढ़ रही है।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग जैविक कपास की उपज और उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से 15 प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत कपास विकास कार्यक्रम लागू कर रहा है।
आईसीएआर – केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान (सीआईसीआर) देश में जैविक कपास के उत्पादन वृद्धि के लिए तकनीक के विकास और अनुसंधान पर काम कर रहा है।
सरकार, परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) परियोजना के माध्यम से भी जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है।
जैविक कपास की खेती मध्य प्रदेश (3,83,133 मीट्रिक टन), महाराष्ट्र (1,68,009 एमटी), गुजरात (85,782), ओडिशा (1,06,495) समेत भारत के 15 राज्यों में प्रमुखता से होती है।