Chanakya Niti : चाणक्य एक महान राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और राजनयिक माने जाते हैं। उन्होंने अपने अनुभवों से चाणक्य नीति पुस्तक लिखी।
जिसमें राजनीति ही नहीं नैतिकता के आधार पर कई ऐसी बातें बताई गई हैं जो मानव जीवन को सफल बनाने में सहायक हैं। उनकी नीतियों ने ही सामान्य बालक चंद्रगुप्त को अखंड भारत का सम्राट बनाया। जानिए चाणक्य के प्यार से जुड़ी इन नीतियों के बारे में विचार …
यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥
अर्थ – चाणक्य अपनी इस नीति के माध्यम से बता रहे हैं कि जिस से प्रेम होता है उसी से भय भी होता है। प्रेम ही सारे दुःखो का मूल है, अतः प्रेम – बन्धनों को तोड़कर सुखपूर्वक रहना चाहिए।
आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम्।
सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम् ॥
अर्थ – चाणक्य कहते हैं कि आचरण से व्यक्ति के कुल का परिचय मिलता है। बोली से देश का पता लगता है। आदर-सत्कार से प्रेम का तथा शरीर को देखकर व्यक्ति के भोजन का पता चलता है।
सा भार्या या सुचिदक्षा सा भार्या या पतिव्रता।
सा भार्या या पतिप्रीता सा भार्या सत्यवादिनी ॥
अर्थ – चाणक्य की ये नीति कहती है कि वही पत्नी है, जो पवित्र और कुशल हो। वही पत्नी है, जो पतिव्रता हो। वही पत्नी है, जिसे पति से प्रीति हो। वही पत्नी है, जो पति से सत्य बोले।
त्यजेद्धर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्।
त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या निःस्नेहान्बान्धवांस्यजेत्॥
अर्थ – चाणक्य कहते हैं कि जिस धर्म में यदि दया न हो तो उसे त्याग देना चाहिए। विद्याहीन गुरु को, क्रोधी पत्नी को तथा स्नेहहीन बान्धवों को भी त्याग देना चाहिए।
प्रस्तावसदृशं वाक्यं प्रभावसदृशं प्रियम्।
आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पण्डितः॥
अर्थ – किसी सभा में कब क्या बोलना चाहिए, किससे प्रेम करना चाहिए तथा कहां पर कितना क्रोध करना चाहिए जो इन सब बातों को जानता है, उसे पण्डित अर्थात ज्ञानी व्यक्ति कहा जाता है।