Google Doodle Today: गुगल ने 19 जुलाई को अपने मंच पर बालमनी अम्मा को उनके 113वें जन्मदिन के अवसर पर याद किया। बालामणि अम्मा का पूरा नाम नलपत बलमणि अम्मा था।
बालमनी अम्मा मलयालम साहित्य की लेखिका थीं और उनका जन्म आज ही के दिन 19 जुलाई 1909 को हुआ था। मलयालम साहित्य में उनके योगदान को याद करते हुए आज गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया।
बालमनी अम्मा का जन्म
बलमणि अम्मा का जन्म 19 जुलाई 1909 को त्रिशूर जिले के पुन्नयुरकुलम में उनके पैतृक घर नालापत में हुआ था। साहित्य पढ़ने-लिखने की रुचि उनमें बचपन से ही जागृत हो गई थी।
साहित्य में उनकी रुचि के कारण उन्होंने अपने जीवनकाल में कई साहित्यिक रचनाओं की रचना की और उन्हें कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया।
आपको बता दें कि बालमणि अम्मा को उनकी साहित्यिक कृतियों के लिए सरस्वती सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। बालमणि अम्मा को भारत के दूसरे सर्वोच्च पुरस्कार पद्म विभूषण से भी नवाजा जा चुका है।
बालमणि अम्मा कभी स्कूल नहीं गईं
उनके मलयालम साहित्य के बारे में जानकर आपको लगा होगा कि उन्होंने खूब पढ़ा होगा। लेकिन, आपको बता दें कि बलमणि अम्मा कभी स्कूल नहीं गईं।
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उन्होंने घर पर ही अपने चाचा नलप्पट नारायण मेनन से शिक्षा प्राप्त की। नलप्पट नारायण मेनन एक बहुत लोकप्रिय मलयाली कवि थे।
बालमणि अम्मा ने अपनी पूरी शिक्षा अपने घर पर ही प्राप्त की। बालमणि अम्मा के पास पुस्तकों और कार्यों का एक विशाल संग्रहालय था।
बालमणि अम्मा की शादी
बलमणि अम्मा की शादी महज 19 साल की उम्र में बीएम नायर से हुई थी। बीएम नायर मलयालम अखबार मातृभूमि के प्रबंध निदेशक और प्रबंध संपादक थे। बालमणि अम्मा ने भी 4 बच्चों को जन्म दिया।
उनके नाम सुलोचना, श्याम सुंदर, मोहनदास और कमला दास थे। कमला दास एक बहुत प्रसिद्ध लेखिका भी बनीं। आपको बता दें कि कमला दास को उनकी साहित्यिक कृतियों के लिए 1984 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
बालमणि अम्मा साहित्यिक कृतियाँ
बालमणि अम्मा ने 1930 में अपनी पहली कविता कोप्पुकाई प्रकाशित की। तब वह केवल 21 वर्ष की थीं। बालमणि अम्मा को उनकी साहित्यिक रचना के कारण साहित्य जगत के सभी दिग्गजों के बीच जाना जाने लगा।
बाद में उनकी पहचान चीन के पूर्व शासक परीक्षित थंपुरन से हुई। परीक्षित थंपुरन ने उन्हें साहित्य निपुण पुरस्कार से भी सम्मानित किया। उन्होंने अपने शुरुआती दौर में मातृत्व पर अधिक जोर दिया।
उनकी इसी विशेषता के कारण बाद में वे मातृत्व की कवयित्री के रूप में जानी जाने लगीं। अगर हम बालमणि अम्मा की कुछ प्रमुख कृतियों की बात करें तो इनमें अम्मा (1934), मुथस्सी (1962) और मजुविंते कथा (1966) शामिल हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवन में 20 से अधिक गद्य और अनुवादों का संकलन प्रकाशित किया।
बालमणि अम्मा का निधन
बालमणि अम्मा ने 29 सितंबर 2004 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। कोच्चि में उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया। लोग उन्हें प्यार से अम्मा और मथुसी (दादी) के नाम से भी जानते थे।
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