नोएडा: आप-हम सबको कभी न कभी किसी बात की चिंता सताती है। ऐसी स्थिति में हम क्या करते हैं? चिंतन मनन। कई बार हम सीलिंग फैन को निहारते हुए सोचते हैं। कभी कोई बात कर रहा होता है लेकिन हमें उसकी आवाज सुनाई नहीं देती। हम हां-हूं कर जताते हैं।
मन में वो चिंता खाई जा रही होती है। हम सोचते रहते हैं इसका निदान क्या है। ये बहुत ही स्वाभाविक है। ऐसा व्यक्ति के साथ भी हो सकता है और व्यक्तियों के समूह या संस्था के साथ भी। यही कांग्रेस के साथ हुआ। सोनिया गांधी-राहुल गांधी को अचानक एहसास हुआ कि पार्टी अब दो राज्यों तक सीमित है। इसलिए दस जनपथ की डाइनिंग टेबल पर चिंता करने का वक्त गुजर गया। सामूहिक चिंतन की जरूरत है।
जबकि चिंता करने की मांग पार्टी के बड़े नेता पहले से कर रहे थे। इस मांग पर सोनिया ने ध्यान ही नहीं दिया। वो तो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनाव परिणाम के नतीजे थे जिसने परिवार को सामूहिक चिंतन के लिए मजबूर किया।
तय हुआ उदयपुर में एसी की व्यवस्था कर नव संकल्प चिंतन शिविर लगाया जाए। चिंतन के दूसरे दिन पंजाब के कद्दावर नेता सुनील जाखड़ और चौथे दिन गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर कांग्रेस को गुडबाय कह दिया।
आम तौर पर चिंतन की धारा से समस्या का समाधान होता है। यहां समस्या बढ़ती जा रही है। दरअसल समस्याएं पार्टी के भीतर इतनी हैं कि शिविर में पहले इसकी गिनती करने का फैसला हुआ। कई टेस्ट कराए गए। लैब की रिपोर्ट से पता चला कि सैंकड़ों जिलाध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष मानो मृत्युपर्यंत पद पर स्थापित हैं। एक रिपोर्ट ये आई कि पार्टी में युवाओं की भागीदारी कम है।
गिनती करने पर पता चला ये 100 में 50 भी युवा नहीं हैं। फिर अपवाद के साथ परिवारवाद को भी बीमारी के तौर पर चिन्हित किया गया। अपवाद मतलब गांधी परिवार। तय हुआ कि परिवार से एक ही को टिकट मिलेगा। दूसरे को तभी जब वो पार्टी में पांच साल काम कर चुका हो।
कुछ बीमारियों की लिस्ट तो प्रशांत किशोर भी लेकर आए थे। उनकी गली नहीं तो वो बिहार जाकर सुराज की बात करने लगे। बापू की कर्मभूमि से पदयात्रा का ऐलान कर दिया। कांग्रेस को लगा पीके पार्टी में आए नहीं लेकिन पदयात्रा करने में क्या हर्ज है। इसलिए तय किया गया कि सोनिया गांधी-राहुल गांधी से लेकर पार्टी का हर कार्यकर्ता पदयात्रा करेगा। भारत जोड़ो अभियान शुरू होगा।
बीमारियों की लिस्ट लंबी हुई
लेकिन तीन दिनों के चिंतन शिविर में सिर्फ बीमारियों की लिस्ट लंबी हुई। मर्ज का पता चल गया है। निदान कैसे होगा, अब इस पर काम करना है। इसने शायद कुछ नेताओं को निराश कर दिया। हार्दिक भी इन्हीं में से एक हैं। गुजरात की बीमारी का इलाज राहुल इन्हीं से कराना चाहते थे।
हार्दिक ने पटेलों को आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ जो हवा बनाई थी उसे जिग्नेश मेवानी के दलित चेहरे के साथ मिक्स कर कांग्रेस 2022 के आखिर में अहमादबाद से भाजपा को उखाड़ फेंकना चाहती थी।
एससी-एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के लिए 50% पद आरक्षित करने पर विचार कर रही कांग्रेस
लेकिन हार्दिक ने खुद ही कांग्रेस में इतनी बीमारियां गिना दीं जिसकी कल्पना संकल्प शिविर में कांग्रेसियों ने भी नहीं की होगी। सोनिया गंधी को तीन भाषाओं में पत्र लिख कर हार्दिक ने पार्टी से छुटकारा पाया है उसमें 10 से ज्यादा ऐसे मुद्दे गिनाए गए हैं जिन पर कांग्रेस के रवैये से वे बेहद दुखी थे।
मैं जब भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मिला मुझे लगा कि उनका ध्यान गुजरात और यहां के मुद्दों से ज्यादा अपने मोबाइल फोन पर है : हार्दिक पटेल
कुछ बीमारियां या खामियां सीधे तौर पर उन्होंने राहुल गांधी में खोज ली हैं। इतनी हिम्मत तो जी-23 ने भी खुलकर नहीं दिखाई। अब इसको बीमारी कहें या आदत ये आपको तय करना है। बकौल हार्दिक जब भी वो गुजरात के हितों की बात करते तो राहुल गांधी मोबाइल फोन में घुस जाते हैं।
मतलब ध्यान नहीं देते। दूसरी बात, जब भी देश में संकट आता है हमारे नेता विदेश में होते हैं। अब ये समझना रॉकेट साइंस नहीं है कि ‘हमारे नेता’ का मतलब किससे है। तीसरी गड़बड़ी पर्सनल टाइप की है। हार्दिक के मुताबिक वे जब भी गुजरात आते हैं तो सभी बड़े नेता अपना चिकन सैंडविच उनको यानी राहुल को खिलाने में लग जाते हैं।
चौथी शिकायत प्रचंड गंभीर है। हार्दिक का कहना है कि वो अपनी गाड़ी से 500-600 किलोमीटर चलते हैं लेकिन पेट्रोल का पैसा नहीं मिलता है। जब पेट्रोल का दाम 110 रुपए लीटर हो ऐसे में अपनी जेब फूंक कर पार्टी के लिए कौन काम करेगा?
क्रोनी कैपिटलिज्म के नाम पर मोदी पर हमला भी नागवार गुजरा है। अक्सर राहुल गांधी को आपने गौतम अडाणी, मुकेश अंबानी पर हमला करते सुना होगा। हार्दिक ने इसे ट्विस्ट दे दिया। उन्हें ये गुजरातियों का अपमान लग रहा है। देश के पीएम भी गुजरात से हैं। लेकिन मैं ये नहीं कह रहा कि हार्दिक की सहानुभूति भाजपा के साथ हो गई है। ये वक्त बताएगा। अभी तो यही कहकर बात समाप्त करता हूं कि कांग्रेस को तुरंत निदान शिविर लगाने की जरूरत है।