Chanakya Niti In Hindi : आचार्य चाणक्य ने मानव समाज के कल्याण के लिए अपनी नीति पुस्तक में कई अहम बातें बताईं हैं।
जिनका अनुसरण कर आप किसी भी तरह की परेशानी का हल निकाल सकते हैं। आचार्य चाणक्य को महान ज्ञाता, कुशल राजनितज्ञ और सफल अर्थशास्त्री माना जाता है।
चाणक्य नीति अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी का ऐसे ही मित्र या शत्रु नहीं बन जाता, ये सब कार्यवश ही होता है। अत: किसी न किसी कार्य के कारण ही मित्रता या शत्रुता होती है।
चाणक्य की नीतियां राजा महाराजाओं के दौर को देखकर बनाई गई हैं जिन्हें आज के समय के अनुसार अर्थ निकालकर समझा जा सकता है।
अब देखिए चाणक्य की कुछ ऐसी नीतियां जो आपको जीवन के किसी न किसी मोड़ पर काम आ सकती हैं।
ऐसे होती है इन लोगों की पहचान:
जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥
अर्थ: किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेजते समय सेवक की पहचान होती है। दुःख के समय में बन्धु-बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है ।
ये होता है सच्चा मित्र
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसण्कटे। राजद्वारे श्मशाने च यात्तिष्ठति स बान्धवः ॥
अर्थ: बीमार होने पर, असमय शत्रु से घिर जाने पर, राजकार्य में सहायक रूप में तथा मृत्यु पर श्मशान भूमि में ले जाने वाला व्यक्ति सच्चा मित्र और बन्धु होता है।
रिश्तों की परख
ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः सः पिता यस्तु पोषकः। तन्मित्रं यत्र विश्वासः सा भार्या या निवृतिः ॥
अर्थ: पुत्र वही है, जो पिता का भक्त है। पिता वही है, जो पोषक है, मित्र वही है, जो विश्वासपात्र हो। पत्नी वही है, जो हृदय को आनन्दित करे।
गुप्त बातों को कभी न करें उजागर
न विश्वसेत्कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्। कदाचित्कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत् ॥
अर्थ: कुमित्र पर विश्वास नहीं करना चाहिए और इसी तरह मित्र पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। कभी कुपित होने पर मित्र भी आपकी गुप्त बातें सबको बता सकता हैं।
सफलता का राज
मनसा चिन्तितं कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत्। मन्त्रेण रक्षयेद् गूढं कार्य चापि नियोजयेत् ॥
अर्थ: मन में सोचे हुए कार्य को मुंह से बाहर नहीं निकालना चाहिए। मन्त्र के समान गुप्त रखकर उसकी रक्षा करनी चाहिए। गुप्त रखकर ही उस काम को करना भी चाहिए।
लालयेत् पंचवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्। प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्॥