Peanut Farming : मानसून के मौसम की शुरुआत के बाद खरीफ फसलों की बुवाई बड़े पैमाने पर की जाती है। इस मौसम में कई किसान मूंगफली की खेती भी करते हैं। कुछ क्षेत्रों में इसे बादाम या गरीबो का बादाम भी कहा जाता है।
अंग्रेजी में इसे मूंगफली कहते हैं। मूंगफली की खेती किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक देश है।
प्रमुख खरीफ फसल के रूप में जानी जाने वाली मूंगफली को ‘गरीबों का काजू’ भी कहा जाता है। मूंगफली की खेती करने वाले किसान कुछ ही महीनों में लाखों रुपये कमा लेते हैं।
चार महीने में बदल जाएगी किसानों की किस्मत! खेती और खेती को समझने वालों के मुताबिक मूंगफली की खेती करने वाले गरीब किसानों की किस्मत 4 महीने में बदल सकती है।
हालांकि मूंगफली की खेती भी सही तकनीक पर निर्भर है। इसलिए मूंगफली की खेती करने वाले किसानों को कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए।
जैसे खरीफ मौसम में बुवाई का समय, मिट्टी में उर्वरक की आवश्यकता, सिंचाई और कीट प्रबंधन। इन राज्यों में मूंगफली की खेती गुजरात, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर मूंगफली उगाने वाले किसान पाए जाते हैं।
अच्छी गुणवत्ता के मूंगफली की रोपाई करें
इन राज्यों की खरीफ फसल में मूंगफली की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। उन्नत बीजों और आधुनिक तकनीक का संतुलन जो किसान मूंगफली की खेती से अच्छी कमाई का सपना देख रहे हैं।
उनके लिए जरूरी है कि मूंगफली की उन्नत बीज और आधुनिक तकनीक के बीच संतुलन बनाकर मूंगफली की खेती की जाए। मूंगफली की बुवाई के बाद जून से अक्टूबर तक मूंगफली कि फसल तैयार होती हैं।
ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई बहुत प्रभावी ढंग से होती है। और अक्टूबर-नवंबर में सर्दी का मौसम शुरू होने के साथ ही किसान अच्छी खासी कमाई करने लगते हैं।
मिट्टी में नमी जरूरी है
मूंगफली की खेती की तैयारी के संबंध में विशेषज्ञों का मानना है कि खेतों की तीन से चार बार जुताई करनी चाहिए।
जुताई के बाद खेत की मिट्टी को पैट चलाकर समतल कर लेना चाहिए। मिट्टी में नमी बरकरार रहे इसके लिए पाटा चलाना जरूरी है।
अच्छी गुणवत्ता वाली मूंगफली की पौध खेत को समतल करने के बाद मिट्टी की जांच कराएं। पोषक तत्वों की कमी के अनुसार जैविक खाद यानी खाद और अन्य जरूरी चीजें डालें। मिट्टी का उपचार कर किसान अच्छी गुणवत्ता वाली मूंगफली अच्छी मात्रा में उगा सकेंगे।
मूंगफली के रोगों की रोकथाम
खेत तैयार करने के बाद मूंगफली की बुवाई के लिए बीज का उपचार भी करना चाहिए। इससे मूंगफली में कीड़े व अन्य बीमारियों का हमला नहीं होता है। चूंकि मूंगफली एक भूमिगत फसल है।
यानी यह एक ऐसी फसल है जो मिट्टी के नीचे उगाई जाती है, इसमें अच्छी गुणवत्ता के बीच चयन करने से फसल में रोग की संभावना बहुत कम हो जाती है और नुकसान की संभावना भी कम हो जाती है।
एक हेक्टेयर में कितनी मूंगफली
आमतौर पर 15 जून से 15 जुलाई के बीच एक हेक्टेयर में कितनी मूंगफली की बारिश हो जाती है। खेत की जुताई करने के बाद यदि जुताई के बाद तैयार जमीन पर नमी हो तो इस 1 महीने में मूंगफली की बुवाई की जा सकती है।
यदि एक हेक्टेयर भूमि में मूंगफली की बुवाई करनी है तो 60 से 70 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी। किसान जितनी जमीन बोना चाहते हैं, उसके हिसाब से मात्रा कम या ज्यादा होगी।
सिंचाई का प्रश्न
मूंगफली की फसल में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। ऐसे में इसकी फसल को जल रक्षक भी कहा जाता है। मूंगफली की सिंचाई पूरी तरह बारिश पर निर्भर है।
कम वर्षा होने की स्थिति में किसानों को अन्य साधनों से सिंचाई करनी चाहिए। इसके लिए आप विशेषज्ञों की सलाह भी ले सकते हैं। हालांकि अधिक बारिश के कारण मूंगफली के सड़ने की संभावना है।
मूंगफली की कटाई के दौरान खेत में पानी भर जाने पर अक्सर कीड़े और अन्य बीमारियां हमला करती हैं। ऐसे में खेतों में पानी की निकासी की पर्याप्त व्यवस्था करना भी जरूरी है.
खरपतवार नियंत्रण
मूंगफली की फसल को मिट्टी के नीचे बोया जाता है, जिसमें कीट रोग और खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान देना आवश्यक है। मूंगफली की फसल में अक्सर खरपतवार निकल आते हैं।
इससे मूंगफली की मात्रा और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती है। यदि पौधा बड़ा नहीं होगा तो मूंगफली का उत्पादन कम मात्रा में होगा। इसलिए रोपाई के 15 से 30 दिनों के बाद मूंगफली के खेतों में निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
बेकार घास को उखाड़ कर फेंक दें। इसके अलावा किसान मूंगफली में कीट व अन्य लोगों पर भी नजर रखें। ताकि विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार 15-15 दिनों के अंतराल पर जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सके।