Report : केंद्र की मोदी सरकार यूपीए सरकार द्वारा बनाए गए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को खत्म करने पर विचार कर रही है। ऐसा दावा डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से किया गया है।
इसके मुताबिक अगर ऐसा होता है तो सरकार इस मंत्रालय का सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में विलय कर देगी। वहीं, मंत्रालय की ओर से चलाई जा रही योजना जस की तस बनी रहेगी।
खबरों में कहा गया है कि मंत्रालय के अधिकारियों ने अभी तक इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार किया है. लेकिन सूत्र ने कहा, ‘भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का मानना है कि अल्पसंख्यक मामलों के लिए अलग मंत्रालय की जरूरत नहीं है।
The Centre will likely scrap the Ministry of Minority Affairs established by the UPA government in 2006 and merge it with the Ministry of Social Justice and Empowerment.
— Amar Prasad Reddy (@amarprasadreddy) October 3, 2022
उनके अनुसार, इस मंत्रालय का गठन (2006 में) यूपीए (मनमोहन सरकार) की तुष्टिकरण की राजनीति के कारण ही हुआ था। अब मोदी सरकार इसे फिर से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन लाना चाहती है।
बता दें कि मंत्रालय की बर्खास्तगी को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं आई है। लेकिन कांग्रेस और मुस्लिम संगठनों ने नाराजगी जतानी शुरू कर दी।
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य सैयद नसीर हुसैन ने कहा है कि, बीजेपी ऐसा करके समाज को बांटना चाहती है। ऐसा मंत्रालय कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा लाया गया था।
ताकि अल्पसंख्यक मुख्यधारा में आएं और उनका विकास हो सके। लेकिन बीजेपी सरकार हर मौके का इस्तेमाल अल्पसंख्यकों के खिलाफ ही करती है।
The Govt is likely to scrap the 'Ministry of Minority Affairs' established by the UPA government in 2006 and merge it with the 'Ministry of Social Justice and Empowerment'..! pic.twitter.com/H8AkuaM2mK
— Satya Swara ( Voice of Truth ) (@Satya_Swara) October 3, 2022
वहीं जमात-ए-इस्लामी के सचिव सैयद तनवीर अहमद ने कहा कि, यह सब संविधान की भावना के खिलाफ है, इसका मानव विकास रुक जाएगा। सरकार को ज्यादा से ज्यादा पैसा देकर मंत्रालय को मजबूत करना चाहिए ताकि अल्पसंख्यकों का कल्याण हो सके।
उल्लेखनीय है कि अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2 (सी) के तहत अल्पसंख्यक के तहत छह समुदायों को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया है।
ये मुस्लिम, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी और सिख हैं। लेकिन इस मंत्रालय के बनने के बाद से ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ की सोच परिलक्षित हुई है, चाहे वह योजनाओं का क्रियान्वयन हो या फंडिंग या उनका नामकरण।