UP Election 2022 | आरपीएन सिंह उर्फ रतनजीत प्रताप नारायण सिंह (RPN Singh-Ratanjit Pratap Narayan Singh) कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। आरपीएन ने एक लंबा राजनीतिक सफर तय किया है।
वह यूपीए सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री थे और एक समय था जब कुशीनगर की पडरौना विधानसभा को आरपीएन का गढ़ कहा जाता था। 2009 में लोकसभा सांसद चुने जाने तक वह यहां से तीन बार विधायक रहे थे।
2007 में भी उन्होंने कांग्रेस के लिए यह सीट जीती थी। 2009 में आरपीएन के सांसद बनने के बाद इस सीट पर स्वामी प्रसाद मौर्य की एंट्री हुई और उन्होंने उपचुनाव जीता।
आरपीएन सिंह का राजनीतिक सफर
- 1996 से 2009 तक पडरौना से कांग्रेस के विधायक रहे।
- 2009 से 2014 तक सांसद रहे।
- साल 2009-2011 तक केंद्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री रहे।
- साल 2011-2013 तक केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस और कॉर्पोरेट मामले के राज्य मंत्री रहे।
- सिंह के पिता कुंवर सीपीएन सिंह इंदिरा गांधी के समय रक्षा राज्यमंत्री थे।
- 1997 से 1999 तक सिंह युवा कांग्रेस उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष थे।
- 2003 से 2006 तक ऑल इंडिया कांग्रेस के सचिव रहे।
2017 में भाजपा में शामिल हुए थे मौर्य
2009 में हुए पडरौना विधानसभा के उपचुनाव में बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य यहां से जीते। 2012 में भी मौर्य ने जीत हासिल की। 2017 चुनाव से ठीक पहले मौर्य भाजपा में शामिल हो गए और यहां से तीसरी बार जीतने में कामयाब रहे।
इस बार फिर मौर्य ने पाला बदल लिया है। अब वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। उधर, भाजपा ने भी यहां आरपीएन सिंह के तौर पर नया चेहरा ढूंढ लिया है। भाजपा अगर आरपीएन सिंह को यहां से उतारती है तो पडरौना का मुकाबला काफी रोचक होगा।
जातीय गणित क्या कहता है?
पडरौना विधानसभा में 3.48 लाख मतदाता हैं. अधिकतम 84 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। इसके बाद करीब 76 हजार एससी, 52 हजार ब्राह्मण, 48 हजार यादव मतदाता हैं।
अब अगर आरपीएन सिंह की बिरादरी यानी सेंथवार मतदाताओं की बात करें तो उनकी संख्या 46 हजार है, जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य की कुशवाहा जाति के मतदाता करीब 44 हजार हैं. मतलब दोनों के बीच मुकाबला काफी कड़ा है।
राजनीतिक विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव का कहना है कि यहां मुस्लिम और यादव वोटर खुलेआम सपा को वोट देंगे. बाकी जातियों के वोटरों में बंटवारा होगा।
अगर सैंथवार आरपीएन का समर्थन करते हैं तो कुशवाहा-मौर्य बिरादरी के ज्यादातर लोग स्वामी प्रसाद के साथ होंगे. ऐसे में एससी और ब्राह्मण वोटर ही निर्णायक भूमिका में होंगे। जो इन दो श्रेणियों के मतदाताओं पर जीत हासिल कर सकता है वह पडरौना को जीत सकेगा।
पडरौना का इतिहास क्या है?
2017 में मोदी लहर से पहले बीजेपी ने 1991 की राम लहर में पडरौना से जीत हासिल की थी. 1993 में यह सीट समाजवादी पार्टी के बालेश्वर यादव ने जीती थी. 1996 से यहां कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह का वर्चस्व कायम है।
वह 2009 तक इस सीट से विधायक थे। आरपीएन के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस ने यह सीट नहीं जीती है। 2017 के चुनाव में बीजेपी के स्वामी प्रसाद मौर्य को 93649 वोट मिले थे। उन्होंने बसपा के जावेद इकबाल को 40552 मतों से हराया। तीसरे नंबर पर कांग्रेस की शिवकुमारी देवी 41162 वोटों के साथ रहीं।