नागपुर : महाराष्ट्र के नागपुर में एक मराठी कवि ने सम्मान समारोह के मंच पर देवी सरस्वती की मूर्ति लगाने से नाराज होकर अवॉर्ड लेने से इनकार कर दिया।
मराठी साहित्य के कवि यशवंत मनोहर ने कहा कि चूंकि आयोजकों ने उनकी आपत्ति के बावजूद सम्मान समारोह के मंच पर देवी सरस्वती का चित्र लगाया था, इस कारण उन्होंने अवॉर्ड स्वीकार करने से इनकार किया।
आयोजकों ने नहीं स्वीकार की मांग
मनोहर ने इसपर आपत्ति जताते हुए कहा, ‘देवी सरस्वती की मूर्ति उस शोषक मानसिकता की प्रतीक है, जिसने महिलाओं और शूद्रों को शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्त करने से दूर किया।’
हालांकि आयोजकों ने उनकी इस बात को स्वीकार नहीं किया और साफ शब्दों में कहा कि सम्मान समारोह का स्वरूप नहीं बदला जा सकता।
मुझे उम्मीद थी मेरे लिए कार्यक्रम बदलेगा
मराठी में लिखी इस चिट्ठी में यशवंत ने लिखा, ‘मैं उम्मीद कर रहा था कि विदर्भ साहित्य संघ मेरे विचार और सिद्धांतों के बारे में सोचेगा और अपने कार्यक्रमों में बदलाव करेगा।
लेकिन अधिकारियों ने मुझे बताया कि मंच पर देवी सरस्वती की मूर्ति होगी। मैंने ऐसे कई सम्मान और पुरस्कार इसी एक कारण से छोड़ दिए हैं। मैं साहित्य में धर्म का दखल स्वीकार नहीं कर सकता, ऐसे में मैं इस सम्मान को स्वीकार करने से इनकार करता हूं।’
मैं साहित्य में धर्म का दखल स्वीकार नहीं कर सकता, ऐसे में मैं इस सम्मान को स्वीकार करने से इनकार करता हूं।’
यशवंत ने ये चिट्ठी जिस विदर्भ साहित्य संघ को लिखी वो विदर्भ क्षेत्र में मराठी साहित्य के लिए काम करने वाली सबसे बड़ी संस्था है।
इसके स्थापना वर्ष 1923 में मराठी साहित्य के विस्तार के लिए हुई थी। हर वर्ष यह संस्था ऐसे ही सम्मान समारोह में मराठी साहित्य से जुड़े लोगों को सम्मानित करती है।
संस्था की ओर से हर दो वर्ष पर एक लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी दिया जाता है, जिसके लिए इस साल यशवंत मनोहर को चुना गया था।
संस्था के अधिकारियों के मुताबिक, उनके सम्मान समारोहों में मंच पर सरस्वती पूजन की परंपरा 90 वर्ष से अधिक समय से निभाई जा रही है और इसे कभी बदला नहीं गया।