नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दूरसंचार सेवाओं में किसी भी तरह की खामी का सामना करने वाला व्यक्ति कंपनी के खिलाफ अपनी शिकायत के साथ सीधे उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, सूर्य कांत और विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, “तथ्य यह है कि भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत मध्यस्थता का उपाय एक वैधानिक प्रकृति का है, ऐसे मामलों में उपभोक्ता अदालत के अधिकार क्षेत्र को नहीं छीनेगा।”
पीठ ने कहा कि उपभोक्ता के पास मध्यस्थता के उपाय का सहारा लेने का विकल्प है, लेकिन ऐसा करने के लिए कानून में कोई बाध्यता नहीं है और उपभोक्ता के पास 2019 के नए अधिनियम के तहत उपाय का सहारा लेने का विकल्प है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986। एक विकल्प होगा। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के आदेश को चुनौती देने वाली वोडाफोन की अपील पर फैसला सुनाया।
एनसीडीआरसी ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एससीडीआरसी) के रुख की पुष्टि की थी कि भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा VII बी एक निजी सेवा प्रदाता पर लागू नहीं होगी।
क्योंकि यह टेलीग्राफ प्राधिकरण नहीं था। समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, अजय कुमार अग्रवाल नाम के एक व्यक्ति ने 25 मई 2014 को जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, अहमदाबाद में शिकायत के संबंध में एक याचिका दायर की थी। इसमें वोडाफोन की सेवाओं में कमी का आरोप लगाया गया था।
ऐसे में वोडाफोन उपभोक्ताओं को मोबाइल सेवाएं मुहैया करा रही थी। शिकायत के मुताबिक अजय कुमार अग्रवाल के पास पोस्टपेड मोबाइल कनेक्शन था। इसकी मासिक फीस 249 रुपये थी।
अग्रवाल का आरोप है कि 8 नवंबर 2013 से 7 दिसंबर 2013 तक उनका औसत मासिक बिल 555 रुपये था, लेकिन कंपनी ने उनसे ज्यादा पैसा वसूल किया।
कंपनी ने उनसे 24,609.51 रुपये का बिल वसूल किया। ज्ञात हो कि कंपनी के बिलों के भुगतान के लिए ऑटो पे सिस्टम लागू था।