टीपू सुल्तान (Tipu Sultan) को अक्सर ‘टाइगर’ के रूप में महिमामंडित किया जाता है। मैसूर पर शासन करने वाले इस आक्रमणकारी की याद में जयंती मनाई जाती है, जबकि उसकी क्रूरता के किस्से इतिहास में दर्ज हैं।
बीजेपी विरोधी पार्टियां उन्हें ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ के लिए अपना हीरो बनाती हैं और कर्नाटक में उनके नाम पर चुनाव जीतने की कोशिश करती हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि टीपू सुल्तान के हरम में कितनी महिलाएं थीं?
श्रीरंगपट्टम मंदिर पर हमला करने और उसे नष्ट करने वाले टीपू सुल्तान के बच्चों की संख्या के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है।
इतिहासकारों में इस बात पर कोई सहमति नहीं है कि उसके कितनी महिलाओं के साथ संबंध थे और उसके कितने बच्चे थे।
यहां तक कि उनकी पत्नियों की संख्या को लेकर भी अलग-अलग आंकड़े दिए गए हैं। यह इतना स्पष्ट है कि उनकी पहली दो पत्नियों में से एक इमाम साहब बख्शी की बेटी थी और एक रुकैया बानो थी।
उन्होंने 1774 में एक ही रात में दोनों से शादी की। 1796 में उन्होंने खदीजा जमान बेगम से शादी की। लेकिन, एक साल बाद बच्चे को जन्म देते समय महिला की मौत हो गई।
अंग्रेजों और मैसूर के बीच चौथे युद्ध के बाद अंग्रेजों ने उनके जनानाखाने पर भी कब्जा कर लिया। एक अंग्रेज अधिकारी जिसे उस ‘जेनाना’ का प्रभारी बनाया गया, यह तय किया गया कि उसकी एक चौथी पत्नी भी है।
उसका नाम बुरांती बेगम रखा गया। उसी अधिकारी ने यह भी बताया कि टीपू सुल्तान ने कहा था कि कुल 12 बेटे और 8 बेटियां जीवित हैं, जिनमें सबसे बड़े का नाम फतह बहादुर था।
वह हैरान था कि टीपू सुल्तान के बच्चों को माताओं के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। ‘टाइगर: द लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान’ किताब में इतिहासकार केट ब्रिटलबैंक ने टीपू सुल्तान के हरम के बारे में जानकारी दी है।
टीपू सुल्तान के हरम में 601 महिलाएं थीं
उन्होंने लिखा है कि 1799 में श्रीरंगपट्टनम में टीपू सुल्तान के हरम में 601 महिलाएं थीं। ये महिलाएं न केवल टीपू सुल्तान की थीं, बल्कि उनके अब्बा हैदर अली की भी थीं।
इनमें से 333 महिलाएं टीपू सुल्तान और 268 उनके अब्बा हैदर अली की थीं। हैदर अली की मौत के बाद भी वो महिलाएं उस हरम में थीं। किन्नरों को जनाना की रक्षा के लिए रखा जाता था।
इस्लामी शासन में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां जनाना की देखभाल के लिए पुरुषों को नहीं रखा जाता था, बल्कि ऐसे लोगों को रखा जाता था, जो या तो नपुंसक थे या उन्हें किन्नर बना दिया गया था।
टीपू सुल्तान के हरम में शामिल इन महिलाओं में उनके परिवार के सदस्य, कई रखैलें और काम पर रखने वाली महिलाएं शामिल थीं। टीपू सुल्तान का एक भाई अब्दुल करीम भी था।
हैदर अली ने अपने बेटे का विवाह सावनूर के नवाब की बेटी से किया था। यह शादी 1799 में हुई थी। अब्दुल करीम को इतिहास में अक्सर कमजोर दिमाग वाला और कम बुद्धिमान कहा जाता है।
हालांकि यह भी कहा जाता है कि वह बुद्धिहीन होते हुए भी अपनी पत्नी के साथ बड़ी क्रूरता से पेश आता था। टीपू सुल्तान ने भी अपनी पत्नी को अपने हरम में रखा था। वामपंथी इतिहासकारों का कहना है कि उन्होंने अपने ‘संरक्षण’ के लिए ऐसा किया।
हालांकि, केट ब्रिटलबैंक ने अपनी किताब में टीपू सुल्तान के हरम में इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं के होने और उनके उत्पीड़न का बचाव किया है।
वह कहती हैं कि अंग्रेज हमेशा ऐसी महिलाओं के साथ बंदी जैसा व्यवहार करते थे, जबकि ऐसा नहीं था। इसके पीछे उनका तर्क है कि जिन लोगों ने इस तरह की टिप्पणियां की हैं, वे ऐसे हरम के अंदर कभी नहीं गए। यूरोप के कुछ ही डॉक्टर थे जो कभी-कभार वहां जाते थे।
लेकिन, उनकी अपनी पुस्तक में यह भी स्वीकार किया गया है कि टीपू सुल्तान के हरम में रहने वाली कई पत्नियां, रखैलियां और अन्य महिलाएं दासी के रूप में खरीदी गईं और वहां कई अन्य राजाओं, महिलाओं को हराकर अपहरण कर लाया गया था। ये सभी टीपू सुल्तान की इच्छा पर निर्भर थे। साथ ही वह अपने राज्य की किसी भी लड़की को उठाकर वहां ले आता था।
यूरोप में एक ऐसी परंपरा हुआ करती थी, जिसे ‘द्रोइट डू सिग्नूर’ कहा जाता था। इसका मतलब है कि राजा को अपनी किसी भी प्रजा को लेने और उन्हें आदेश देने का अधिकार है।
यूरोप के जमींदार ‘स्वामी’ किसी भी महिला को इस तरह से उठा लेते थे और उनके साथ शारीरिक संबंध बनाते थे। वह अपने अधीन महिलाओं से शादी की रात ही संबंध बनाता था। इसके तहत किसी भी कुंवारी या विवाहित महिला को ले जाया जाता था।
टीपू सुल्तान ने भी इस परंपरा का पालन किया। केट ब्रिटलबैंक्स यह भी लिखती हैं कि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उन्होंने इन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया होगा।
वामपंथी इतिहासकार अक्सर टीपू सुल्तान को दलित महिलाओं का उद्धारकर्ता बताते हैं और कहते हैं कि उन्होंने अपने शासनकाल में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था। वह अपने राज्य में शरिया शासन चलाते थे, क्या यह भी ‘समाज सेवा’ है?
अंग्रेजों ने अपने अभिलेखों में ईसाइयों के साथ टीपू सुल्तान के अत्याचारों की जानकारी भी दर्ज की है। उसने हजारों ईसाइयों को कई वर्षों तक बंधक बनाकर प्रताड़ित किया।
जोएल न्यूटन ‘मून-ओ-ईस्टिज्म, वॉल्यूम II’ में लिखते हैं कि एक बार उन्होंने हजारों ईसाइयों को 338 किलोमीटर पैदल चलने को कहा, जिसमें 6 हफ्ते लगे। बीच में कई की मौत हो गई। अंत में उनमें से कई महिलाओं और लड़कियों को उसकी सेना में ‘बांट’ दिया गया।
इनमें से कई को हराम में भेजा गया था। साथ ही, उन्हें मृत्यु और इस्लाम अपनाने के बीच चयन करने के लिए कहा गया। जिद करने वालों के नाक-कान काट दिए गए और उनसे शौचालय की सफाई कराई गई।
उसी किताब में एक पीड़ित का जिक्र है जिसने बताया कि वह अपने परिवार को अपने सामने मुस्लिम बनते देख रहा था और उसकी मां और बहन दोनों गर्भवती थीं।
उन्होंने कहा कि उन दोनों के गर्भ में सिर्फ मुसलमान पल रहे थे। उसने बताया था कि वह अपनी मां और बहन से भी नहीं मिल सका क्योंकि वह उनके दर्द का सामना नहीं कर सकता था।
स्कॉटिश डॉक्टर ने किया टीपू सुल्तान के हरम के बारे में खुलासा
अब हम आपको एक स्कॉटिश चिकित्सक के हवाले से टीपू सुल्तान के पिता या हरम के बारे में बताते हैं, जो कई बार इसके अंदर भी गया था। स्कॉटिश चिकित्सक फ्रांसिस बुकानन-हैमिल्टन टीपू सुल्तान कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में रहते थे।
Macquarie University की वेबसाइट पर फ्रांसिस हैमिलटन के अनुभव
अपनी पुस्तक ‘ए जर्नी फ्रॉम मद्रास थ्रू द कंट्रीज ऑफ मैसूर, केनरा एंड मालाबार…’ में उन्होंने लिखा है कि टीपू सुल्तान के निजी कक्ष से जनाना तक एक मार्ग बनाया गया था।
उन्होंने यह भी पुष्टि की कि इसमें उनकी और उनके पिता की 600 महिलाएं शामिल थीं, जिनकी सुरक्षा के लिए किन्नरों को नियुक्त किया गया था। लेकिन वे महिलाएं कौन थीं, इसके बारे में उन्होंने क्या लिखा, यह जानने लायक है।
मैक्वेरी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर फ्रांसिस हैमिल्टन का अनुभव
वे लिखते हैं, ”उनमें से कई हिंदुस्तानी थे. कई ब्राह्मणों और राजाओं की बेटियाँ थीं जिन्हें उनके माता-पिता के सामने बलपूर्वक उठाकर ले जाया गया था।
छोटी सी उम्र में ही जनाना में कैद कर दिया गया था। उनका पालन-पोषण इस तरह से किया जा रहा था कि उनमें इस्लाम के प्रति अच्छी भावना पैदा हो।
मुझे नहीं लगता कि उनमें से कोई भी उस कैद से बाहर निकलना चाहता था क्योंकि उन्हें यह भी नहीं पता था कि बाहर क्या हो रहा है और जीवन कैसे जीना है।”
टिपू को क्रूर क्या कहा जाता है
टीपू सुल्तान को क्रूर और बलात्कारी बताने के पीछे क्या तर्क है। तब इतिहास के अभ्यासक बताते है की, टीपू सुल्तान खुद कहते हैं कि मैंने 4 लाख हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराया है।
दूसरे पत्र में कहा गया है कि अल्लाह की कृपा से कालीकट के सभी हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कर दिया गया है। टीपू सुल्तान के सैकड़ों पत्र हैं, जो अपने पत्रों में दावा करते हैं कि वह हिंदू और ईसाई महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करते थे।
उसकी सेना को कैसे विवश किया गया? जो शासक मंदिरों और चर्चों को नष्ट करने में गर्व महसूस करता है, उसे इतिहास में एक महान शासक के रूप में व्याख्यायित किया जाना चाहिए।
टीपू सुल्तान की तलवार पर खुदा है
हैदर अली की म्रत्यु के बाद उसका पुत्र टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठते ही टीपू ने मैसूर को मुस्लिम राज्य घोषित कर दिया।
मुस्लिम सुल्तानों की परम्परा के अनुसार टीपू ने एक आम दरबार में घोषणा की “मै सभी काफिरों को मुस्लमान बनाकर रहूंगा। तुंरत ही उसने सभी हिन्दुओं को फरमान भी जारी कर दिया।
उसने मैसूर के गाव- गाँव के मुस्लिम अधिकारियों के पास लिखित सूचना भिजवादी कि, “सभी हिन्दुओं को इस्लाम में सामील कर दो। जो स्वेच्छा से मुसलमान न बने उसे बलपूर्वक मुसलमान बनाओ और जो पुरूष विरोध करे, उनका कत्ल करवा दो। उनकी स्त्रिओं को पकडकर उन्हें दासी बनाकर मुसलमानों में बाँट दो।”
इस्लामीकरण का यह तांडव टीपू ने इतनी तेजी से चलाया कि, पूरे हिंदू समाज में त्राहि त्राहि मच गई.इस्लामिक दानवों से बचने का कोई उपाय न देखकर धर्म रक्षा के विचार से हजारों हिंदू स्त्री पुरुषों ने अपने बच्चों सहित तुंगभद्रा आदि नदिओं में कूद कर जान दे दी। हजारों ने अग्नि में प्रवेश कर अपनी जान दे दी किंतु धर्म त्यागना स्वीकार नही किया।
टीपू सुलतान को हमारे इतिहास में एक प्रजावत्सल राजा के रूप में दर्शाया गया है। टीपू ने अपने राज्य में लगभग ५ लाख हिन्दुओ को जबरन मुस्लमान बनाया। लाखों की संख्या में कत्ल कराये। कुछ एतिहासिक तथ्य उपलब्ध है जिससे टीपू के दानवी ह्रदय का पता चलता है।
ऐसे कितने और ऐतिहासिक तथ्य टीपू सुलतान को एक मतान्ध, निर्दयी, हिन्दुओं का संहारक साबित करते हैं क्या ये हिन्दू समाज के साथ अन्याय नही है कि, हिन्दुओं के हत्यारे को हिन्दू समाज के सामने ही एक वीर देशभक्त राजा बताया जाता है। अगर टीपू जैसे क्रूर शासक को भारत का आदर्श शासक बताया जायेगा तब तो हिंदू धर्म और संस्कृती का साथ सबसे बडा विश्वासघात होगा।
इतिहास में कूछ बाते सही या गलत साबित न हो सकी
1. टीपू सुल्तान को दुनिया का पहला मिसाइल मैन माना जाता है। बीबीसी की एक खबर के मुताबिक टीपू सुल्तान के रॉकेट लंदन के मशहूर साइंस म्यूज़ियम में रखे गए हैं। अठारहवीं शताब्दी के अंत में अंग्रेज इन रॉकेटों को अपने साथ ले गए।
2. टीपू द्वारा कई युद्ध हारने के बाद, मराठों और निजाम ने अंग्रेजों के साथ एक संधि की थी। ऐसे में टीपू ने अंग्रेजों के साथ एक संधि का भी प्रस्ताव रखा।
वैसे अंग्रेजों को भी टीपू की शक्ति का आभास हो गया था, इसलिए वे भी गुप्त मन से एक सन्धि चाहते थे। मार्च 1784 में दोनों पक्षों के बीच वार्ता हुई और इसके परिणामस्वरूप ‘मैंगलोर की संधि’ संपन्न हुई।
3. टीपू ने 18 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ पहला युद्ध जीता था।
4. ‘पलक्कड़ का किला’ ‘टीपू का किला’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह पलक्कड़ टाउन के मध्य भाग में स्थित है। इसका निर्माण 1766 में किया गया था। यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत एक संरक्षित स्मारक है।
5. टीपू सुल्तान खुद को नागरिक टीपू कहता था।
टीपू सुल्तान की तलवार
18वीं सदी में मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान से जुड़ी कुल 30 चीजों की अब तक नीलामी हो चुकी है। इनमें उनके पास एक खास तलवार भी है, जो करीब 21 करोड़ रुपये में नीलाम हुई थी।
इस तलवार की मूठ पर पत्थर से जड़े बाघ को उकेरा गया है। वैसे भी ‘मैसूर का टाइगर’ कहे जाने वाले टीपू सुल्तान की ज्यादातर चीजों में उसका प्रतीक ‘बाघ’ पाया जाता है।
इस तलवार को बनाने के लिए बुट्ज़ नामक एक उच्च कार्बन सामग्री वाले स्टील का इस्तेमाल किया गया था। यह तलवार इतनी तेज थी कि कोई लोहे का कवच पहने हुए भी उसे चीर भी सकता था। इस तलवार की मूठ पर कुरान की आयतें भी लिखी हुई थीं, जिनमें युद्ध के भाग्य के संदेश खुदे हुए थे।
कहा जाता है कि टीपू सुल्तान की एक ऐसी बेशकीमती तलवार ब्रिटेन के बर्कशायर के घर की छत पर 220 साल से पड़ी थी, लेकिन किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी।
इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया। जब भारत सरकार को इस बात का पता चला तो उसने इस तलवार को भारत वापस लाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली।
कुछ साल पहले इंग्लैंड में टीपू सुल्तान की बेशकीमती तलवार के साथ उसके 8 अन्य दुर्लभ हथियारों की भी नीलामी हुई थी।
इस दौरान विजय माल्या ने 1.5 करोड़ रुपये की सबसे बड़ी बोली लगाकर टीपू सुल्तान की यह बेशकीमती तलवार खरीदी। नीलामी में शामिल हथियारों में टीपू की एक फ्लिंटलॉक गन भी शामिल थी।