संविधान बदलने की कोशिश और कितनी आसान है ‘घर वापसी’?

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Trying to change the constitution and how easy is 'ghar wapsi'?

आसमान छूती महंगाई और भयंकर फैली बेरोज़गारी से जनता का ध्यान भटकाने के लिये एक बार फिर सत्ताधारियों व उनके संरक्षक संगठनों द्वारा धर्म व धर्मस्थलों के मुद्दे उछाले जाने लगे हैं। राजनेताओं द्वारा नारा लगाया जा रहा है – “अयोध्या-काशी झांकी है -अभी तो मथुरा बाक़ी है।” 

समाज के धार्मिक ध्रुवीकरण के लिये सार्वजनिक सभाओं में ऐसी बातें की जा रही हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

महात्मा गाँधी को साधू वेषधारियों द्वारा मंच से गलियां दी जा रही हैं और स्वतंत्र भारत के पहले आतंकवादी व गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया जा रहा है।

संविधान बदलने की कोशिश 

भारत वर्ष को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देश के संविधान को बदलने के प्रयास जारी हैं। और इन सब के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत सहित अनेक दक्षिण पंथी नेता ‘घर वापसी’ कराये जाने हेतु प्रयासरत हैं।

अर्थात उनके अनुसार जिनके पूर्वज पूर्व में कभी हिन्दू धर्म त्याग कर ईसाई व मुसलमान बन चुके हैं उनकी हिन्दू धर्म में वापसी कराई जानी चाहिये।

गत दिसंबर माह में चित्रकूट में तीन दिवसीय ‘हिन्‍दू एकता महाकुंभ’ का आयोजन किया गया। इस आयोजन में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिन्‍दू धर्म छोड़ने वालों की घर वापसी का आह्वान किया। उपस्थित लोगों ने आरएसएस प्रमुख के साथ संकल्प लेते हुए कहा- “मैं हिन्दू संस्कृति का धर्मयोद्धा मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की संकल्प स्थली पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं कि मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू समाज के संरक्षण, संवर्धन और सुरक्षा के लिए आजीवन कार्य करूंगा।

मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि किसी भी हिन्दू भाई को हिन्दू धर्म से विमुख नहीं होने दूंगा। जो भाई धर्म छोड़ कर चले गए हैं, उनकी भी घर वापसी के लिए कार्य करूंगा। उन्हें परिवार का हिस्सा बनाऊंगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि हिन्दू बहनों की अस्मिता, सम्मान व शील की रक्षा के लिए सर्वस्व अर्पण करूंगा। जाति, वर्ग, भाषा, पंथ के भेद से ऊपर उठ कर हिन्दू समाज को समरस सशक्त अभेद्य बनाने के लिए पूरी शक्ति से कार्य करूंगा।”

यहीं जगदगुरु रामभद्राचार्य महाराज ने कहा – “हमने हिंदुओं के हितों की शुरुआत कर दी है  A से अयोध्या, K से काशी के बाद अब M से मथुरा की बारी है।”

गाँधी को गाली

अब देश में विभिन्न क्षेत्रों व स्थानों से इसी तरह की हिंदुत्ववादी भीड़ इकट्ठी कर सत्ता संरक्षण में बे रोक टोक महात्मा गाँधी व समुदाय विशेष को गलियां देने व गाँधी के हत्यारों का क़सीदा पढ़ने यहाँ तक कि गोडसे की प्रतिमा स्थापित करने तक की बात की जा रही है।

सवाल यह है कि क्या किसी की घर वापसी (धर्म परिवर्तन ) करना इतना सरल है जितना भाषणों में बताया जा रहा है? या फिर समाज को विभाजित करने और इसका लाभ चुनावों में उठाने के लिये यह महज़ एक चाल चली जा रही है? 

नफ़रत का पाठ

संघ परिवार के ऐसे अनेक साहित्य हैं जिनमें ईसाई व मुस्लिम समुदाय के प्रति नफ़रत भरी पड़ी है। कम्युनिस्टों को भी यह बुरा भला कहते हैं। उन्हें राष्ट्र विरोधी व चीन समर्थक बताते हैं। यह ग़ैर भाजपाई, उदारवादी व धर्म निरपेक्ष हिन्दुओं को भी राष्ट्र विरोधी व धर्म विरोधी बताते हैं।

बड़े आश्चर्य की बात है कि स्वयं इन्हीं की अपनी विचारधारा के कई नेताओं ने अंग्रेज़ों से मुआफ़ी मांगी, स्वतंत्रता सेनानियों के साथ ग़द्दारी की परन्तु यह उन्हें राष्ट्रभक्त और ‘भारत रत्न ‘ बताते हैं। और इस झूठे प्रोपगंडे में गोदी मीडिया उनके साथ खड़ा हुआ है। गोया झूठ पर सच का लेबल लगाया जा रहा है।

यह ईसाई व मुसलमानों से तो घर वापसी का आह्वान करते हैं पर यह नहीं बताते कि आख़िर क्या वजह थी कि 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में छः लाख से अधिक लोगों ने हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था?

आज भी नागपुर में उसी स्थान पर बनाई गयी विशाल दीक्षा भूमि देश के उस सबसे बड़े व ताज़ातरीन धर्म परिवर्तन की गवाह है। जैन, सिख आदि सभी धर्मों के पूर्वज भी कभी कभी हिन्दू ही थे। क्या इनके पास उनकी ‘घर वापसी’ की भी कोई योजना है या फिर यह ‘विशेष ऑफ़र’ केवल ईसाईयों व मुसलमानों के लिये ही है। और इन सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि किसी को इतनी आसानी से ‘घर वापसी’ नामक धर्म परिवर्तन के लिये राज़ी किया जा सकता है? इस बात को विभिन्न उदाहरणों से समझा जा सकता है।

Ghar wapsi slogan by hindu organisations                                                    - Satya Hindi

सर्वप्रथम तो यह कि समस्त भारतीय मुसलमान वह नहीं जिन्होंने मुग़लों की लालच या आक्रांताओं के भयवश धर्म परिवर्तन किया हो। देश में तमाम मुसलमानों के शजरे उनके अपने ही पूर्वजों से मिलते हैं। जो भी व्यक्ति जिस भी धर्म व माता-पिता के घर पैदा हुआ, उसका वही धर्म होता है जो उसके माता पिता का है। पैदा होते ही माँ-बाप अपने बच्चे को धार्मिक संस्कार देने लगते हैं कोई राम राम और जय बोलना सिखाता है, कोई सलाम करना तो कोई सत श्री अकाल बोलना।

बड़े होकर यही बालक अपने बाल संस्कारों में प्राप्त हुए सभी धार्मिक संस्कारों को अपनाने लगता है। और उसी धार्मिक राह पर चल पड़ता है। न ही कोई धर्म का महाज्ञानी होता है न ही किसी में तर्कों के साथ अपने धर्म को परिभाषित करने की क्षमता है। केवल और केवल पैतृक संस्कार ही हमारा धर्म निर्धारित करते हैं। और संस्कारों से विमुख होना इतना आसान नहीं।

आज देश की एक बड़ी आबादी गांव व क़स्बों से निकलकर शहरों व महानगरों में रहने लगी है। शहरों व महानगरों में पैदा होने व शहरी समाज में रहकर संस्कारित होने वाले बच्चों को यदि वयस्क होने के बाद उनके पैतृक गांव या क़स्बे में वापस जाकर रहने को बाध्य किया जाये तो क्या उनका वहां रह पाना संभव है?

तमाम लोग विदेशों में जा बसे। वहाँ उनके बच्चे पैदा हो रहे, पढ़ लिख रहे और काम काज कर रहे हैं। क्या उन भारतीय मूल के बच्चों को स्वदेश प्रेम की चाशनी चटाकर और उन्हें भयमुक्त वातावरण का वास्ता देकर व सुनहरे सपने दिखाकर स्वदेश बुलाया जा सकता है?

यहाँ भी उनकी ‘घर वापसी’ करने जैसी केवल भावनात्मक बातें करने से ज़्यादा ज़रूरी है कि यह सोचा जाये कि गांव व क़स्बों के लोगों को आख़िर शहरों, महानगरों तथा विदेशों में जाकर रहना और बसना ही क्यों पड़ता है?